संग तुम्हारे जीवन की ये राहें
सीताराम जी की कृपा से,
चार महीने संग चलते रहे,
हाथों में हाथ थामे,
संग-संग जीवन के हर कदम बढ़ाते रहे।
तुम हो मेरी प्रार्थना का उत्तर,
हर पल, हर घड़ी तुम्हारे साथ,
जीवन का ये सफर स्वर्णिम बना है,
तुमसे ही मेरे दिल का हर आकाश सजा है।
तेरी हँसी में है वो मिठास,
जो मेरे हर दुःख को पल में मिटा देती है।
तेरी आँखों में बसती है वो रौशनी,
जो मेरे सपनों को हकीकत में बदल देती है।
चार महीने के इस सफर में,
हर दिन एक नई उम्मीद लेकर आया है।
तुम्हारे साथ बिताए ये पल,
मुझे हर लम्हा खुशियों से भरा नज़र आया है।
हम यूँ ही संग-संग रहें सदा,
हर बाधा को पार करते हुए।
तुमसे ही तो है ये जीवन पूरा,
सदा तुम संग, ये मेरा वचन है।
सीताराम जी की कृपा हम पर बनी रहे,
हमेशा यूँ ही साथ चलते रहें,
तुम हो तो ज़िंदगी महकती है,
तेरे बिना ये सफर अधूरा लगता है।
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